"तुम्हें याद हैं?
मरीन ड्राईव का किनारा, सोना घुलती लहरें,
अरमानों की उड़ान पर लज्जा के पहरे...
मुझे याद है...
तुम्हारी मांग भरता किरणों का रंग सुनहरा,
माथे पर मेरे बंधा-तुम्हारी ज़ुल्फ़ों का सेहरा...
तुम्हें याद है?
अपने अपने दफ़्तर, अपनी अपनी लोकल
-इन सब के बीच चुराए फ़ुरसत के वह पल!
मुझे याद है.. तुम्हें हो न हो...
डॉक्टरों की ख़ामोशी, ICU की गंध,
तुम्हारे कफ़न-मेरे चेहरे का एक जैसा रंग...
अब तो यही याद है...
मरीन ड्राईव का किनारा, यादें सिसकती हुईं,
लहरों से पैरों तले रेती खिसकती हुई..."
-Yogesh.
25th August, 2005
Saturday, October 14, 2006
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
bahut khoob!
"tumhAre kafan - mere chehare kA ek jaisA rang.." wAh!
Post a Comment