"सर, मुझे पहचाना?" कहता चौखट पर वह आया, कपड़े उसके मटमैले थे मुखड़ा था कुम्हलाया
पलभर बैठा, मुसकाया और नज़रें उसने उठाईं, बोला, "घर में अतिथि बनकर गंगामैय्या आयी!
नैहर लौटी दुल्हन जैसी आंगन में वह खेली, साथ में ले गयी बहुत कुछ, बस, बीवी को वह भूली.
चौखट धंस गयी, बुझ गया चूल्हा, पीछे कुछ भी न छोड़ा, जाते जाते मगर रखा पलकों में पानी थोड़ा.
हम दोनो अब उठा रहे हैं जो भी गया था रौंदा, कीचड़ में अब बसा रहे हैं फिर एक नया घरौंदा."
ज़ेब टटोली मैंने तो वह खड़ा हुआ और बोला, "पैसे न दें सर, आया हूं मैं खुद को पा के अकेला
कमर नहीं टूटी भले ही हुआ हो सब बरबाद, कहें मुझे "तुम जूझो!!", मुझे बस दें यह आशीर्वाद!!"
-- कुसुमाग्रज की मूल मराठी कविता का भाषांतर |