ब्रश से उलझी हैं लटें,
मुझ से तुम्हारी याद भी,
बिंदी तुम्हारी आईने पर
-एक साल के बाद भी!
रात का सन्नाटा
पंखे की घरघराहट में कटता है,
अकेला मेरा मन-
बिस्तर के कोने में सिमटता है.
तुम्हारी पुकार के बजाय
अलार्म से सुबह चलती है,
अकेला टोस्ट जलता है,
अकेली कॉफ़ी उबलती है.
बिछड़े हैं हम एक साल से,
रूह मेरी तरसी है,
तुम्हारी यादों के संग बरखा,
तुम्हारी बरसी पर बरसी है...
-Yogesh.
(9th September, 2005)
Saturday, October 14, 2006
याद...
"तुम्हें याद हैं?
मरीन ड्राईव का किनारा, सोना घुलती लहरें,
अरमानों की उड़ान पर लज्जा के पहरे...
मुझे याद है...
तुम्हारी मांग भरता किरणों का रंग सुनहरा,
माथे पर मेरे बंधा-तुम्हारी ज़ुल्फ़ों का सेहरा...
तुम्हें याद है?
अपने अपने दफ़्तर, अपनी अपनी लोकल
-इन सब के बीच चुराए फ़ुरसत के वह पल!
मुझे याद है.. तुम्हें हो न हो...
डॉक्टरों की ख़ामोशी, ICU की गंध,
तुम्हारे कफ़न-मेरे चेहरे का एक जैसा रंग...
अब तो यही याद है...
मरीन ड्राईव का किनारा, यादें सिसकती हुईं,
लहरों से पैरों तले रेती खिसकती हुई..."
-Yogesh.
25th August, 2005
मरीन ड्राईव का किनारा, सोना घुलती लहरें,
अरमानों की उड़ान पर लज्जा के पहरे...
मुझे याद है...
तुम्हारी मांग भरता किरणों का रंग सुनहरा,
माथे पर मेरे बंधा-तुम्हारी ज़ुल्फ़ों का सेहरा...
तुम्हें याद है?
अपने अपने दफ़्तर, अपनी अपनी लोकल
-इन सब के बीच चुराए फ़ुरसत के वह पल!
मुझे याद है.. तुम्हें हो न हो...
डॉक्टरों की ख़ामोशी, ICU की गंध,
तुम्हारे कफ़न-मेरे चेहरे का एक जैसा रंग...
अब तो यही याद है...
मरीन ड्राईव का किनारा, यादें सिसकती हुईं,
लहरों से पैरों तले रेती खिसकती हुई..."
-Yogesh.
25th August, 2005
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